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शराब के नशे में चूर ड्यूटी नहीं कर सकते : शीर्ष अदालत ने बीएसएफ जवान को हटाने का फैसला सही ठहराया

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शराब के नशे में चूर ड्यूटी नहीं कर सकते : शीर्ष अदालत ने बीएसएफ जवान को हटाने का फैसला सही ठहराया

शराब पीकर ड्यूटी करने वाले सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) जवान को नौकरी से हटाने के फैसले में हस्तक्षेप करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा, आपने स्वीकार किया है कि ड्यूटी के दौरान नशे में चूर रहते थे।

आपका तर्क है कि विचलित होने के कारण आपने शराब पी थी। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं। हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

बीएसएफ जवान के वकील ने तर्क रखा कि उसे नौकरी से हटाते वक्त कई नियमों की अनदेखी की गई। साथ ही, शराब पीने के कारण नौकरी से हटाने का फैसला काफी कठोर है। पीठ ने कहा कि साफ तौर पर इसे कठोर ही होना चाहिए। बीएसएफ में ड्यूटी पर रहते आप शराब नहीं पी सकते। कुछ अपराध ऐसे हैं, जिनमें हम हस्तक्षेप करना पसंद नहीं करते।

शॉर्टकट अपनाने पर हाईकोर्टों की खिंचाई, कहा- अपराध की प्रकृति और गंभीरता देखकर दें सजा
आपराधिक अपीलें निपटाने के लिए शॉर्टकट अपनाने को लेकर उच्च न्यायालयों की खिंचाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सजा अपराध की प्रकृति व गंभीरता को देखते हुए उचित ढंग से ही दी जानी चाहिए। शुक्रवार को जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, किसी अपील पर फैसले तक लंबी अवधि बीत जाना ही सजा देने का आधार नहीं हो सकता है, यह सरासर अनुचित और असंगत है।

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी राजस्थान हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर अपील पर दिए फैसले में की है। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने तीन साल के कठोर कारावास को घटा दिया था। पीठ ने कहा, हाईकोर्ट ने इस अपील को बहुत ढिलाई और लापरवाह तरीके से निपटाया है। मामले में सजा घटाने का उच्च अदालत का फैसला और आदेश न्याय के उपहास का उदाहरण है, जो शीर्ष अदालत द्वारा इस संबंध में दिए फैसलों में निर्धारित तमाम कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ है।