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राजद अध्यक्ष लालू यादव एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई पार्टी बनाने की तैयारी

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 CM नीतीश और लालू यादव

राजद ने अपने संविधान में संशोधन करके राजद अध्यक्ष लालू यादव एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री एवं उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव को अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का नाम एवं उसके चुनाव चिह्न लालटेन को लेकर किसी भी प्रकार के फैसले के लिए अधिकृत कर दिया है।

दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन के अंतिम दिन खुले सत्र में हजारों कार्यकर्ताओं एवं नेताओं की उपस्थिति में लालू यादव के नजदीकी भोला यादव ने यह प्रस्ताव रखा जिसे तालियों की गड़गड़ाहट के बीच पास कर दिया गया। इसके पश्चात् से ही अटकल आरम्भ है।

वही जो लोग समझ रहे हैं वो चुप हैं तथा घोषणा के इंतजार में हैं। जो नहीं समझ रहे हैं वो परेशान हैं कि लालू यादव 25 वर्ष पुरानी अपनी पार्टी का नाम या चुनाव चिह्न अब क्यों बदलना चाहते हैं जिसके लिए वो संविधान में संशोधन तक करवा रहे हैं।

जो समझ रहे हैं उनका अनुमान है कि ये आने वाले दिनों में नीतीश कुमार की पार्टी जदयू एवं लालू यादव की पार्टी राजद के मिलकर एक हो जाने और एक नई पार्टी बनाने की तैयारी है। ऐसा क्यों हो सकता है, इसे समझना होगा।

वैसे लालू एवं नीतीश की पार्टियों के विलय की बातें 2015 में भी गंभीर रूप से हुई थीं जब समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाटेड, जेडीएस, इनेलो एवं सजपा ने मिलकर जनता परिवार बनाने की घोषणा की थी मगर वो बात घोषणा से आगे नहीं बढ़ सकी।

मुलायम सिंह यादव को इस नई पार्टी का अध्यक्ष चुना गया था मगर बिहार विधानसभा चुनाव में तीन सीट ऑफर होने पर समाजवादी पार्टी ने ही सबसे पहले रास्ता अलग कर लिया।

2015 में नीतीश एवं लालू ने मिलकर बिहार में विधानसभा का चुनाव लड़ा तथा जीतने के पश्चात् नीतीश ने सरकार बनाई थी। फिर नीतीश 2017 में वापस NDA के पास चले गए तथा इस वर्ष अगस्त में फिर से राजद के साथ वापस आ गए।

नीतीश इस बार जब लालू यादव के साथ आए तो माहौल अलग था। भाजपा दूसरे एवं जदयू तीसरे नंबर की पार्टी थी। विधानसभा में राजद सबसे बड़ी पार्टी थी। असदुद्दीन ओवैसी के 4 विधायकों के राजद में सम्मिलित होने से विधानसभा में भाजपा से बड़ी राजद पार्टी बनी। राजनीति के गलियारों में यह कहा जाता है कि ये 4 MLA जदयू में जाना चाहते थे मगर वहीं से इशारा हुआ कि राजद में जाकर विधानसभा में उसे सबसे बड़ी पार्टी बनाया जाए।

जिससे भाजपा का साथ छोड़ने के बाद यदि राजभवन गठबंधन के बदले सबसे बड़ी पार्टी को ही पहला अवसर देना चाहे तो भी भाजपा सरकार नहीं बना सके। प्लान साफ रहा। राजभवन ने कोई अड़चन भी नहीं पैदा की। एक दिन NDA सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश का इस्तीफा हुआ।