Bharat tv live

आध्यात्मिक एकता - एक लक्ष्य जो परमात्मा हमसे चाहते हैं- संत राजिन्दर सिंह जी महाराज​​​​​​​

 | 
आध्यात्मिक एकता - एक लक्ष्य जो परमात्मा हमसे चाहते हैं- संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
प्रत्येक दिन दुनिया में अलग-अलग जगहों पर कई कारणों से अनेक सभाएं और सम्मेलन होते हैं। यह सम्मेलन विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य, तकनीक, लोक-कल्याण, उद्योग या कई अन्य मुद्दों पर होते हैं। इन सभी सम्मेलनों में जिसमें लिए लोग इकट्ठे होते हैं, आध्यात्मिक एकता एक सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है, इसमें पूरी मानवता शामिल हो सकती है। आध्यात्मिक एकता एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए परमात्मा ने इंसान को बनाया और उसमें प्राण डालकर उसे जीवन दिया है। आध्यात्मिक एकता एक ऐसा लक्ष्य है, जिसके लिए आत्माओं (इंसान) को इस संसार में भेजा गया है। आध्यात्मिक एकता ही वह लक्ष्य है जो परमात्मा हम सबसे चाहते हैं। सभी धर्मों ने आत्मा के अस्तित्व जोकि परमात्मा का अंश है और हमें जान दे रही है, उसे स्वीकारा है। कई धर्म शास्त्रों में परमात्मा को प्रेम, चेतनता और परमानंद का महासागर बताया गया है। कहा जाता है कि शुरू में परमात्मा एक थे, फिर उन्हें एक से अनेक होने का विचार आया। इस एक विचार से परमात्मा अपने अंशों को जिन्हें हम आत्मा कहते हैं, इस संसार में भेज दिया। यदि हममें से हरेक अपने आपको आध्यात्मिक नज़रिये से देखें तो हम पाएंगे कि हम आत्मिक तौर पर परमात्मा के महान, अनंत और असीम समुद्र में एक-दूसरे जुड़े हुए हैं।जब से हम इस दुनिया में आए हैं, हम अपने शरीर और मन से ही पहचाने जाते हैं। हम खुद को उस नाम से जानते हैं, जो हमारे माता-पिता ने हमें दिया है। हम उस धर्म से पहचाने जाते हैं, जिसमें हमारे माता-पिता विश्वास करते हैं। हम खुद को उसी देश का समझते हैं, जहाँ शारीरिक रूप से हम रहते हैं। जितना अधिक हम इन बाहरी नामों से जाने जाते हैं, उतना ही अधिक हम यह भूल जाते हैं कि हम परमात्मा का अंश हैं।यदि हम प्रत्येक धर्म का गहराई से अध्ययन करेंगे और संतों-महात्माओं की शिक्षाओं को समझेंगे तो हम पाएंगे कि सभी धर्म प्रेम, शांति और एकता का ही सबक सिखाते हैं। प्रत्येक संत-महात्मा मानवता का मार्गदर्शन करते आए हैं, जिससे हम अपनी आध्यात्मिक एकता को जान सकें। यदि वास्तव में हम अपने धर्म के मानने वाले बनना चाहते हैं तो हमें उनके गूढ़ रहस्य और संतों-महात्माओं की शिक्षाओं को समझकर उस पर चलना होगा। उनकी शिक्षाओं से ही हम आध्यात्मिक एकता को प्राप्त कर सकते हैं। हर धर्म में यही पाया जाता है कि परमात्मा के पास वापिस जाने का तरीका अपने अंतर में परमात्मा की शक्ति से जुड़ना ही है।एक बार जब हम अपने अंतर में परमात्मा की ज्योति और श्रुति से जुड़ते हैं तो हम दिव्य-प्रेम को प्राप्त कर सकते हैं। फिर हम परमात्मा की ज्योति सब इंसानों, प्राणियों और पूरी सृष्टि में देखते हैं। तब हम अपनी बुनियादी एकता को जान जाते हैं और सबसे प्रेम करने लगते हैं। जब हम परमात्मा की ज्योति को हर प्राणी, फूल और सृष्टि के कण-कण में देखते हैं, तब हम आध्यात्मिक एकता को जान जाते हैं। हम दूसरों का ख्याल रखना और भला करना शुरू कर देते हैं। हम देखते हैं कि सबको अच्छे से भोजन प्राप्त हो और उन्हें किसी प्रकार का दुःख न हो इसका ख्याल करते हैं। हम चाहते हैं कि सबके सिर पर छत हो और हम कोशिश करते हैं कि सबको अच्छी शिक्षा और चिकित्सा सुविधाएं प्राप्त हों। इसके विपरीत यदि हमने परमात्मा के किसी भी जीव या बच्चे को कोई तकलीफ पहुँचाई है तो हम खुद का चेहरा आईने में देखने के काबिल नहीं होते। यदि हम वास्तव में अपने धर्म के अनुयायी बनना चाहते हैं तो हमें पूरी मानवता को परमात्मा के एक ही परिवार का सदस्य मानकर मिलकर बैठना चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म, राज्य, रंग या सामाजिक स्तर से संबंध रखती हो।आईये हम सब मिलकर परमात्मा के प्रेम, ज्योति और परमानंद जो वे अपने सभी बच्चों को प्रदान करना चाहते हैं, उसे अनुभव करें। उस प्रेम में हम स्वयं को लीन कर दें और आध्यात्मिक एकता का अनुभव करने के लिए एक-दूसरे से उस अनंत प्रेम से व्यवहार करें जो हममें प्रवाहित हो रहा है।