ध्यान-अभ्यास के ज़रिये परमात्मा को अपने भीतर पाया जा सकता है: - संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
परमात्मा कहाँ है? - संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
लोगों द्वारा अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्नों में से एक है . परमात्मा कहाँ है? हम अपनी आत्मा के बारे में भी जानना चाहते हैं। विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है, जहां हमारे पास बाहरी अंतरिक्ष का पता लगाने के लिए शक्तिशाली दूरबीन और स्पेसशिप हैं और प्रत्येक परमाणु में सबसे छोटे कणों को देखने के लिए माईक्रोस्कोप हैं, फिर भी विज्ञान इस बात का खुलासा नहीं कर सका कि ईश्वर इस भौतिक ब्रह्मांड में कहां है? सच यह है कि सृष्टिकर्ता अभी तक बाहरी भौतिक ब्रह्मांड में नहीं मिला है, जो संत और महापुरूष सदियों से कह रहे हैं . परमात्मा हमारे भीतर है। उन्होंने ध्यान-अभ्यास के ज़रिये परमात्मा को अपने भीतर पाया है।
ध्यान-अभ्यास क्या है? कुछ लोग इसे केवल शरीर और दिमाग को आराम देने का एक तरीका मानते हैं। संतों और महापुरुषों के लिए ध्यान-अभ्यास परमात्मा को अपने भीतर खोजने का तरीका है। ध्यान-अभ्यास के माध्यम से हम इस सवाल के जवाब पाते हैं कि मृत्यु के बाद हमारे साथ क्या होता है और क्या इस भौतिक जीवन के बाद भी जीवन है?
सभी संतों ने मानव शरीर को हरि-मंदिर कहा है, जिसमें सृष्टिकर्ता रहते हैं। चूँकि आत्मा परमात्मा का अंष है, इसलिए प्रत्येक जीव के भीतर परमात्मा मौजूद हैं। ध्यान-अभ्यास करने से हम अपने अंदर ही परमात्मा को खोज सकते हैं।
ध्यान-अभ्यास करने के लिए क्या निर्देश हैं? ध्यान-अभ्यास सरल है। हम केवल बैठने के लिए एक शांत और आरामदायक जगह ढूंढें, जहां हमारा मन और शरीर स्थिर हो सके। हम अपनी आँखें बंद करें और भीतर देखें कि क्या दिखाई देता है? ध्यान-अभ्यास के दौरान मन हमें विचारों से विचलित करता है, इसीलिए अध्यात्म विज्ञान में हम परमात्मा के किसी भी जाति नाम को मानसिक रूप से दोहराते हैं ताकि मन के विचारों से हमारा ध्यान न भटके। ऐसा करने से हम आराम और शांति महसूस करेंगे और हमारी आत्मा को एक आध्यात्मिक अनुभव होगा जो हमें ईश्वर की खोज में ले जाएगा।
प्रत्येक दिन मानव शरीर को एक प्रयोगशाला के रूप में उपयोग करके और ध्यान-अभ्यास की आध्यात्मिक साधना करने से हमें यह पता लगेगा कि ईश्वर कहाँ है? जब वैज्ञानिक ईश्वर को बाह्य अंतरिक्ष या परमाणु के सूक्ष्म कणों के भीतर ही खोजते रहते हैं, हम ध्यान-अभ्यास में बैठकर सृष्टि के सबसे बड़े रहस्य को स्वयं सुलझा सकते हैं।