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बिहार में महागठबंधन की परीक्षा शुरू,राजद के सामने सहयोगियों को संतुष्ट करने की चुनौती

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बिहार में कच्ची रह गई महागठबंधन की सीट बंटवारे वाली 'खिचड़ी', मुकेश सहनी को झटका, 'एडजस्ट' समस्या से जूझ रहे तेजस्वी

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही महागठबंधन के भीतर सीट बंटवारे को लेकर घमासान तेज हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेतृत्व वाले इस विपक्षी गठबंधन के सहयोगी दल अपनी-अपनी ताकत का दावा करते हुए अधिक से अधिक सीटों पर दावेदारी ठोक रहे हैं। जहां एक ओर कांग्रेस, वाम दल और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने अपनी मांगों को सामने रखा है, वहीं राजद खुद भी अपने परंपरागत गढ़ों में अधिकतम सीटें जीतने की रणनीति बना रही है।

महागठबंधन की एकजुटता का असली इम्तिहान अब शुरू हुआ है, क्योंकि चुनाव नजदीक आने के साथ ही हर दल अपनी सियासी हैसियत को भुनाना चाहता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सीट बंटवारे का यह रास्ता उतना आसान नहीं होगा, जितना कि सियासी यात्राओं और मंचों पर एकता दिखाई दे रही थी। राजद के लिए सभी सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना एक बड़ी चुनौती है।

संगठनात्मक कमजोरियों और चुनावी तैयारियों में सुस्ती के बावजूद कांग्रेस ने चौंकाते हुए 70 सीटों पर दावा ठोक दिया है। पार्टी का तर्क है कि उसकी "राष्ट्रीय पहचान" और "पारंपरिक वोट बैंक" उसे गठबंधन में बड़ी हिस्सेदारी का हकदार बनाते हैं। हालांकि, पिछली बार 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे केवल 19 सीटों पर ही जीत मिली थी, जिससे उसकी दावेदारी पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

महागठबंधन के एक महत्वपूर्ण घटक, सीपीआई (माले) भी इस बार आक्रामक मूड में है। पार्टी ने 40 सीटों की मांग रखी है। सीपीआई (माले) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने साफ शब्दों में कहा है कि राजद जैसे बड़े सहयोगी को छोटे दलों के प्रति अधिक उदारता दिखानी चाहिए। उनका यह रुख यह दर्शाता है कि माले इस चुनाव में अपनी राजनीतिक पैठ को और मजबूत करना चाहती है और पिछली बार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है।

पूर्व मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने भी 50 से अधिक सीटों पर अपनी दावेदारी पेश कर दी है। पार्टी का तर्क है कि उसका समर्थन पिछड़े वर्गों और मछुआरा समुदाय में काफी मजबूत है, जो कि चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में निर्णायक साबित हो सकता है। वीआईपी का यह दावा राजद के लिए और भी मुश्किलें खड़ी कर रहा है, जो पहले से ही सीटों के बंटवारे की जटिलताओं से जूझ रही है।

महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते राजद के सामने एक बड़ी दुविधा है। एक ओर उसे अपने सहयोगी दलों की मांगों को संतुष्ट करना है, वहीं दूसरी ओर वह खुद 125 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। राजद का मानना है कि वह अपने परंपरागत वोट बैंक, जिसमें यादव और मुस्लिम समुदाय प्रमुख हैं, और प्रभाव वाले क्षेत्रों में अधिकतम सीटें जीतकर सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है।