सरकार का स्मार्ट वाटर मैनेजमेंट मॉडल: एक्वीफर मैपिंग से नदियों को मिलेगी स्थायी संजीवनी

राष्ट्रीय गंगा मिशन (नमामि गंगे) के तहत प्रयागराज में एक्वीफर मैपिंग परियोजना का लक्ष्य गंगा नदी के किनारे जल संचयन के उपायों को बेहतर बनाना और जल स्तर को नियंत्रित करने के लिए एक स्थायी प्रणाली विकसित करना है। इस परियोजना में नवाचार और तकनीकी दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जिसमें स्मार्ट जल प्रबंधन प्रणाली, रिमोट सेंसिंग और ड्रोन तकनीकी का उपयोग किया जा रहा है।
यह प्रणाली न केवल जल आपूर्ति में सुधार करेगी, बल्कि नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने में मदद करेगी। इसके अलावा, जल स्रोतों के संरक्षण के साथ-साथ क्षेत्रीय जल संकट को हल करने के लिए तकनीकी दृष्टिकोणों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, जिससे आने वाले समय में पानी की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित हो सकेगी।
नमामि गंगे अभियान के तहत गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र (प्रयागराज से कानपुर के मध्य) में पेलियो-चैनलों पर केंद्रित एक्वीफर मानचित्रण के दौरान एक उल्लेखनीय उपलब्धि प्राप्त हुई है। वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के माध्यम से लगभग 200 किलोमीटर लंबी, लगभग 4 किलोमीटर चौड़ी तथा 15–25 मीटर गहरी दबी हुई प्राचीन नदी की पहचान की है। यह उपलब्धि भारत के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में एक नया अध्याय जोड़ती है।इस परियोजना के अंतर्गत उपग्रह चित्रण तकनीक, भू-स्थानिक आंकड़ों तथा नवीनतम वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग कर प्राचीन नदी मार्गों एवं भूगर्भीय जलाशयों का विस्तृत मानचित्रण किया गया।
एक्वीफर अध्ययनों से पता चलता है कि यह प्राचीन नदी लगभग 3,500–4,000 मिलियन क्यूबिक मीटरतक जल भंडारण क्षमता रखती है। 150 से अधिक प्रबंधित एक्वीफर मैपिंग पुनर्भरण (MAR) स्थल चिह्नित किए गए हैं, जहां पुनर्भरण संरचनाएं बनाई जाएंगी ताकि भूजल स्तर बढ़ सके और नदी का आधार प्रवाहस्थायी बना रहे। पहले चरण में 20–25 प्रबंधित एक्वीफर मैपिंग पुनर्भरण स्थल विकसित किए जाएंगे, जिन पर सीएसआईआर–एनजीआरआई द्वारा वैज्ञानिक निगरानी हेतु स्वचालित जल-स्तर संकेतक स्थापित किए जाएंगे। प्रस्तावित प्रबंधित एक्विफर पुनर्भरण संरचनाओं का आकार 5 मीटर × 5 मीटर × 3 मीटर होगा, जो प्रभावी पुनर्भरण सुनिश्चित करेगा। यह परियोजना उत्तर प्रदेश राज्य भूजल एवं सिंचाई विभागके सहयोग से संचालित की जा रही है, जो एक्विफर पुनर्जीवन की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
प्रयागराज में एक्विफर मानचित्रण परियोजना के सफल कार्यान्वयन से भूजल पुनर्भरण में वृद्धि होगी और नदी के प्रवाह में सुधार होगा, जिससे नमामिगंगे मिशनके अविरल गंगा की दृष्टि को बल मिलेगा। नवीनतम तकनीकों का उपयोग अधोसंरचना विकास में किया गया है, जिसके परिणामस्वरूप नदी प्रवाह और भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के बेहतर उपाय विकसित हुए हैं। भू-जलाशय प्रणालियों के माध्यम से आगामी वर्षों में जल-संकट की समस्या से निपटने के लिए स्थायी और तकनीकी समाधान प्रदान किए जा रहे हैं।
नमामि गंगे मिशन के तहत चलाए जा रहे शोध और प्रौद्योगिकी आधारित प्रयास नदी पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन प्रयासों के तहत जलमग्न जलाशय प्रबंधन, उन्नत रिमोट सेंसिंग, जीआईएस आधारित डेटाबेस, और इन्फ्रास्ट्रक्चरल समाधान लागू किए जा रहे हैं, जो नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः स्थापित करने के साथ-साथ जल संरक्षण के लिए स्थायी उपाय सुनिश्चित करेंगे। इन पहलों से न केवल जलवायु परिवर्तन और जल संकट के प्रभावों को कम किया जाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे।
नमामि गंगे मिशन के तहत प्रयागराज में एक्वीफर मैपिंग परियोजना जैसे नवाचारी प्रयास न केवल गंगा नदी के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि ये देशभर में जल संकट से निपटने के लिए भी एक मजबूत दिशा दिखा रहे हैं। अत्याधुनिक तकनीकी उपायों और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इन पहलों से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का मुकाबला करना, जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन और जल पुनर्भरण के उपायों को लागू करना संभव हो रहा है।
ज़मीन के नीचे छिपे जल भंडार (Aquifers) की गहराई, फैलाव, गुणवत्ता और पुनर्भरण क्षमता का वैज्ञानिक अध्ययन। इससे यह पता चलता है कि किस क्षेत्र में कितना भूजल उपलब्ध है, और उसे कैसे सुरक्षित एवं प्राकृतिक रूप से रिचार्ज किया जा सकता है।
प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर, गाज़ीपुर और बलिया जैसे गंगा तटवर्ती जिलों में इस मैपिंग के जरिए यह जानकारी जुटाई जा रही है कि नदियों और भूजल का आपसी संबंध कैसे काम करता है — और उसे कैसे बेहतर किया जा सकता है।
सरकार का मानना है कि पानी के लिए प्लानिंग अब ‘अनुमान’ से नहीं, ‘आंकड़ों’ से होनी चाहिए। एक्वीफर मैपिंग से मिले हाइड्रोजियोलॉजिकल डेटा के आधार पर न सिर्फ वर्तमान जरूरतों का आकलन किया जा रहा है, बल्कि भविष्य की जल नीति भी तैयार की जा रही है।