गाज़ा में युद्ध विराम : नाज़ुक, दर्दनाक और अनिश्चित
 
                  
                आलेख : मुरलीधरन, अनुवाद : संजय पराते
अक्टूबर 2025 की शुरुआत में गाज़ा में युद्ध विराम की घोषणा हुई। यह नवीनतम घोषणा लगभग दो वर्षों से घेरेबंदी में जकड़े लाखों फ़िलिस्तीनियों के लिए राहत का एक दुर्लभ क्षण था, जो रोज़ाना बमबारी, भूख और विस्थापन की मार झेल रहे थे। इसने कुछ राहत दी, लगातार हो रही हत्याओं पर कुछ रोक लगी, गाज़ा में सहायता ट्रकों को प्रवेश मिलने और घायलों के इलाज होने की कुछ उम्मीद जगाई। लेकिन यह युद्ध विराम नाज़ुक साबित हुआ है। इज़राइली सेना ने, अपनी आदत के अनुसार, समझौते के बाद भी हमले और घुसपैठ किए है। मानवीय सहायता अभी भी बेहद सीमित है। गाज़ा के लोगों के लिए, यह शांति नहीं है -- ट्रम्प या उनके ढिंढोरची चाहे जो भी कहें -- यह एक शांत पीड़ा है।
फ़िलिस्तीनी और दुनिया भर में उनके समर्थक इस योजना से मिली राहत का स्वागत करते हुए भी संशयी हैं और यह सही भी है। पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता, अमेरिकी पत्रकार और लेखक क्रिस हेजेज इस युद्धविराम को एक "व्यावसायिक विराम" कहते हैं... "एक ऐसा क्षण जब आरोपित व्यक्ति को गोलियों की बौछार में मार गिराए जाने से पहले सिगरेट पीने की इजाज़त दी जाती है।"
उल्लंघनों की भरमार
इज़राइल स्याही सूखने से पहले ही 'शांति योजनाओं' का उल्लंघन करने के लिए कुख्यात है। रंगभेदी इज़राइल द्वारा दर्जनों उल्लंघनों की सूचना पहले ही मिल चुकी है। अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, गाजा में, 10 अक्टूबर को युद्धविराम शुरू होने के बाद से, 25 अक्टूबर, 2025 तक, कम से कम 93 फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं। फ़िलिस्तीनी सूत्रों का कहना है कि इससे पहले भी, 19 जनवरी 2025 से 12 फ़रवरी तक, छह-सप्ताह के चरण के युद्धविराम के दौरान, इज़राइल ने कम से कम 265 उल्लंघन किए थे।
शर्म अल शेख समझौते के तहत, इज़राइल ने गिरफ्तारी के बाद अपनी हिरासत में मारे गए लोगों के शव वापस करने का वादा किया था। बहरहाल, फ़िलिस्तीनी अधिकारियों के अनुसार, 16 अक्टूबर, 2025 तक केवल 120 शव ही वापस किए गए हैं। इन शवों की फोरेंसिक जाँच से पता चलता है कि कई पीड़ितों की हत्या हिरासत के दौरान ही की गई थी, जो कब्ज़ा करने वाले बलों की क्रूरता को ही रेखांकित करता है। उन्हें फाँसी पर लटकाया गया था ; बंधनों का इस्तेमाल किया गया था या उनके शरीर पर गोली लगने के घाव थे। कई लोगों के हाथ टूटे हुए थे या जल गए थे और उन्हें गंभीर शारीरिक यातनाएँ दी गईं थीं। कुछ को सैन्य वाहनों के नीचे कुचला गया था। आईडीएफ और इज़राइली आबादी का एक बड़ा हिस्सा, जिसे नफरत की भावना भरकर पाला गया है, फ़िलिस्तीनियों को यातना देने, उन्हें अपंग बनाने और उनकी हत्या करने में परपीड़क आनंद प्राप्त करता है। छोटे से गाज़ा में पूरी दुनिया की तुलना में सबसे ज़्यादा विकलांग बच्चे हैं!
खामियों से भरी योजना
कई टिप्पणीकारों ने बताया है कि इस युद्ध विराम में ऐसे कई प्रावधान हैं, जो इज़राइल को समझौते को रद्द करने या उससे पीछे हटने की अनुमति देते हैं। इस हास्यास्पद योजना की घोषणा के कुछ ही दिनों के भीतर, इज़राइल ने राफ़ा सीमा को खोलने से इनकार कर दिया और सहायता ट्रकों की संख्या को घटाकर 300 प्रतिदिन कर दिया, जबकि सहमति 600 ट्रकों की थी। यहां तक कि, इज़राइली जनता भी नहीं मानती कि यह युद्धविराम कायम रहेगा। इस बात को सबसे ज़्यादा प्रसारित इज़राइली अख़बार इज़राइल हायोम ने भी कहा है, जिसने ट्रम्प की योजना को सिर्फ़ बयानबाज़ी बताया है।
इज़राइल का कलंकित रिकॉर्ड
जहाँ तक पहले के समझौतों के उल्लंघन का सवाल है, जिसका इज़राइल पर अभियोग लगाया गया है। कैंप डेविड समझौते के पहले चरण में इज़राइल और मिस्र ने 1979 में एक शांति संधि पर हस्ताक्षर किए थे। फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) ने इसका बहिष्कार किया था। बाद के चरणों में इज़राइल ने पाँच वर्षों के भीतर गाजा और पश्चिमी तट पर फिलिस्तीनियों को स्वशासन देने और पश्चिमी तट तथा पूर्वी यरुशलम में इज़राइली बस्तियों के निर्माण को रोकने का वादा किया था। क्या इस पर अमल हुआ?
1993 में ओस्लो में, इज़राइल ने पीएलओ को फ़िलिस्तीनी जनता के वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता दी थी और बदले में पीएलओ ने भी इज़राइल के अस्तित्व के अधिकार को मान्यता दी। लेकिन इसका नतीजा क्या हुआ?
1995 में ओस्लो में फिर से एक समझौता हुआ। लेकिन इज़राइल अपने कब्ज़े वाले पश्चिमी तट से हटने के अपने वादे से मुकर गया। यहाँ तक कि फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण, जिसकी स्थापना की गई थी, का भी A और B चिह्नित दो क्षेत्रों पर बहुत सीमित अधिकार था। C तीसरा चिह्नित क्षेत्र था, जो पश्चिमी तट का 60 प्रतिशत था, यह भी पूरी तरह से इज़राइल के नियंत्रण में था। इस समझौते से पीएलओ और उसके सबसे बड़े नेता यासर अराफ़ात को एक बड़ा धक्का पहुंचा और हमास का उदय हुआ। यही इज़राइल का उद्देश्य था, जो पूरा हो गया।
यहाँ तक कि जनवरी, 2025 का युद्ध विराम भी दो महीने से ज़्यादा नहीं चला। और इसका उल्लंघन किसने किया? इसकी शुरुआत इज़राइल द्वारा 18 मार्च को एक भीषण सैन्य अभियान चलाने से हुई, जिसमें रातों रात 400 लोग मारे गए। दरअसल, इस अभियान के कारण समझौते का दूसरा चरण भी विफल हो गया, जिसमें अन्य बातों के अलावा, शेष पुरुष बंधकों की रिहाई भी शामिल थी।
आईसीजे की सलाह
समझौते में इज़राइल के अवैध कब्जे के मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी साध ली गई है और इस कब्जे को समाप्त किया जाना चाहिए। यही बात जुलाई 2024 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) ने भी दोहराई थी। क्या फ़िलिस्तीनियों को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं है? क्या इस जनसंहार के लिए इज़राइल को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा? क्या समझौते में इन बातों को स्वीकार भी किया गया है?
इस बीच, 22 अक्टूबर, 2025 को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने एक परामर्श जारी कर इज़राइल को एक कब्ज़ाधारी ताकत के रूप में उसके दायित्वों की याद दिलाई। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि एक कब्ज़ाधारी ताकत के रूप में इज़राइल, चौथे जिनेवा कन्वेंशन के प्रावधानों सहित, कब्ज़ा कानून के अनुसार, अपने दायित्वों का निर्वहन करने के लिए बाध्य है और अपने सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए कोई भी कार्रवाई सद्भावनापूर्वक की जानी चाहिए और यह अधिकृत आबादी के अधिकारों की रक्षा और उनके सर्वोत्तम हितों को बढ़ावा देने के अनुरूप होनी चाहिए।
पश्चिमी तट पर बसने वालों का आतंकवाद हुआ तेज़
जबकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान गाज़ा पर केंद्रित था, पूर्वी यरुशलम सहित, अधिकृत पश्चिमी तट पर बसने वालों का फ़िलिस्तीनियों पर आतंकवाद तेज़ हो गया। उपनिवेशीकरण और दीवार प्रतिरोध आयोग का अनुमान है कि अक्टूबर की शुरुआत से 21 अक्टूबर, 2025 के बीच, इज़राइली सेना और बसने वालों ने फ़िलिस्तीनी जैतून किसानों पर 158 हमले किए हैं। इनमें से 17 हमले सेना द्वारा और 141 सशस्त्र बसने वालों द्वारा किए गए। इनमें मारपीट, फसलों में आग लगाना, जैतून के पेड़ों को उखाड़ना, सामूहिक गिरफ़्तारियाँ और धमकी शामिल हैं।
इज़राइल ने "सुरक्षा" के नाम पर ज़मीन के बड़े हिस्से को "राज्य की ज़मीन" या "सैन्य क्षेत्र" घोषित करके ज़ब्त कर लिया है। इस कब्ज़े वाली ज़मीन पर वह केवल बसने वालों के लिए सड़कें और सैन्य प्रतिष्ठान बना रहा है। धीरे-धीरे, कब्ज़े वाले पश्चिमी तट पर, वह व्यवस्थित रूप से फ़िलिस्तीनियों को विस्थापित कर रहा है, उनकी कृषि अर्थव्यवस्था को नष्ट कर रहा है और उनकी ज़मीन का स्वरूप बदल रहा है।
संदेश
इज़राइल की खून और ज़मीन की प्यास अभी भी शांत नहीं हुई है। समझौते सिर्फ़ कागज़ के टुकड़े हैं। समझौते के अपने हिस्से का सम्मान करने का उसका कोई इरादा नहीं है। यह युद्ध विराम गाज़ा का जातीय सफ़ाया करने और पूरे "इरेट्ज़ इज़राइल" पर कब्ज़ा करने के उसके लक्ष्य की लालसा को कम नहीं करता। इसे भी वह केवल उसी माध्यम से करना चाहता है, जिसमें वह सक्षम है। और वह है क्रूर बल, केवल जिसका वह उपयोग करना जानता है। और यहूदीवादियों को अनुमानित 62 प्रतिशत इज़राइली आबादी का समर्थन प्राप्त है। अपने क़ब्ज़े वाले पश्चिमी तट पर इज़राइली संप्रभुता लागू करने वाले एक विधेयक को प्रारंभिक मंज़ूरी देने के लिए हुए अक्टूबर में हुए नेसेट वोट से भी यही बात झलकती है।
बेंजामिन नेतन्याहू ने 2014 में 51 दिनों के आक्रमण के ज़रिए, जो हासिल करने कोशिश की थी और जिसमें वह नाकाम रहे थे, आज उन्होंने वह हासिल कर लिया है। आज भी उसकी सेना, असैन्य कर्मचारियों के साथ मिलकर, फ़िलिस्तीनी नागरिकों के उस हिस्से के पीछे की अधोसरंचना को ध्वस्त कर रही है, जिसे इज़राइल "येलो लाइन" कहता है और जो गाज़ा के आधे से ज़्यादा हिस्से पर फैली है। क्या लगातार हत्याएँ और बचे हुए बुनियादी ढाँचे को ध्वस्त करना युद्ध विराम का उल्लंघन नहीं है? कोई यह कैसे मान सकता है कि जब वह सहायता ट्रकों को प्रवेश देने से इंकार कर रहा है, तो पुनर्निर्माण सामग्री को अंदर जाने की अनुमति देगा? गाज़ा का जनसंहार न केवल उस क्षेत्र को पूरी तरह से नष्ट करने, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध को हराने और सामूहिक जनसंहार के ज़रिए उनका मनोबल तोड़ने के लिए रचा गया था, बल्कि इसका उद्देश्य अरब जगत को भी यह संदेश देना है -- इज़राइल को चुनौती दोगे, तो तुम्हारा भी यही हश्र होगा।
(लेखक माकपा के केंद्रीय सचिवमंडल सदस्य हैं। अनुवादक अखिल भारतीय किसान सभा से संबद्ध छत्तीसगढ़ किसान सभा के उपाध्यक्ष हैं।)

