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तानाशाही ताकतों के खिलाफ संघर्ष तेज करने के आह्वान के साथ जलेस का राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न

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तानाशाही ताकतों के खिलाफ संघर्ष तेज करने के आह्वान के साथ जलेस का राष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न

रिपोर्ट : बांदा से लौटकर पूर्णचंद्र रथ

देश में सिर उठा रही नव-फासीवादी और तानाशाही ताकतों के खिलाफ लेखक समुदाय और संस्कृतिकर्मियों के संघर्ष को तेज करने के आह्वान के साथ जनवादी लेखक संघ का 11वां राष्ट्रीय सम्मेलन 19-21 सितंबर 2025 को उत्तरप्रदेश के बांदा में संपन्न हुआ। बड़ोखर खुर्द गांव में प्रेम सिंह की बगिया सभागार में आयोजित इस सम्मेलन में देश के विभिन्न राज्यों से आए हिंदी व उर्दू के लगभग 250 लेखकों ने इसमें भाग लिया। 

सम्मेलन का उदघाटन देश के मशहूर सामाजिक कार्यकर्त्ता, कवि, वैज्ञानिक और फिल्मकार गौहर रजा ने किया। अपने सारगर्भित उदबोधन में उन्होंने कहा कि : "हम लेखक हैं, तो हर शब्द की अपनी एक जिम्मेदारी है। दुनिया भर के लेखकों ने इसे निभाया है। शब्दों की ताकत से सरकारें काँप जाती हैं। लेखक का समाज से शुरू से ही गहरा रिश्ता रहा है। साहित्य विचारों के टकराहट की यात्रा है, जिसमें समानता का द्वंद शामिल है।" उल्लेखनीय है कि ये वही गौहर रज़ा हैं, जिनका आईआईटी बीएचयू में विज्ञान, साहित्य और चेतना का संगम विषय पर होने वाला संबोधन संघी गिरोह ने उन्हें देशद्रोही कहते हुए रुकवा दिया है। जनवादी लेखक संघ ने कहा है कि यह वही अघोषित आपातकाल है, जहां बोलना मना है और लेखक समुदाय को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना है, जिसका आह्वान जलेस के राष्ट्रीय सम्मेलन ने किया है।

इस उदघाटन सत्र की अध्यक्षता चंचल चौहान, रेखा अवस्थी और इब्बार रब्बी के अध्यक्ष मंडल ने की और संचालन महासचिव संजीव कुमार ने किया। जन संस्कृति मंच के महासचिव मनोज कुमार सिंह और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य खान अहमद फारुख ने भी सम्मेलन को अपनी शुभकामनाएं दीं। सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्त्ता और पूर्व सांसद सुभाषिनी अली ने विशिष्ट वक्ता के रूप में सम्मेलन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि उर्दू और हिंदी के भीतर तीन तरह के लेखक मौजूद हैं। एक वे जो भ्रमों के दायरे में हैं, दूसरे वे जो प्रगतिशील ख्वाब देखने वाले हैं और तीसरे वे जो संघर्षों में हैं। सच तो यह है कि हमने शब्दों की जिम्मेदारी नहीं निभाई। उन्होंने कहा कि बोलियों का महत्व भाषा की व्यापकता को बढ़ाता है। विचार व्यक्त करने की आजादी हमारे सरोकारों और संस्कारों की अभिव्यक्ति है। समानता हमारी सबसे कीमती धरोहर और जरूरत है।

जलेस राष्ट्रीय सम्मेलन के तीनों दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम और उत्तेजक विचार सत्रों में गंभीर विचार-विमर्श से भरपूर रहे। जहां पहले दिन का समापन स्थानीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत नौटंकी से हुआ, वहीं समापन में  बुंदेलखंड का शानदार देवारी नृत्य प्रस्तुत किया गया। सम्मेलन के कविता सत्र की शुरुआत केदारनाथ अग्रवाल की कविता 'बसंती हवा' पर कथक नृत्य से हुई, जिसे कथक गुरु श्रद्धा निगम की उपस्थिति में उनकी छात्राओं द्वारा पेश किया गया था। उसके बाद देश भर के आए कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। सम्मेलन में 'अघोषित आपातकाल के हमले और प्रतिरोध' विषय पर विचार सत्र आयोजित हुआ, जिसे  शुभा, कवि संपत सरल, भंवर मेघवंशी और नीतीशा खलको ने संबोधित किया। 'सरोकार का सिनेमा' विषय पर संजय जोशी ने सिनेमा के जन इतिहास से लेकर प्रतिरोध की अभिव्यक्ति पर चर्चा की और प्रोजेक्टर से अपनी प्रस्तुति दी।

सम्मेलन के सांगठनिक सत्र में जलेस महासचिव संजीव कुमार ने सांगठनिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में देश-दुनिया की राजनीति और इसके साहित्यिक-सांस्कृतिक क्षेत्र पर पड़ रहे प्रभावों का  विस्तृत विवेचन किया गया था। रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि हमारे देश में मोदी राज में संविधान और उसके मूल्यों, नागरिक अधिकारों और मानवाधिकारों, प्रगतिशील और वैज्ञानिक सोच, संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता और स्वतंत्रता, शिक्षा की वैज्ञानिक अंतर्वस्तु पर किस तरह हमले किए जा रहे हैं, जिसके चलते देश में नफरती वातावरण का निर्माण हो रहा है और देश की धर्मनिरपेक्ष बुनियाद कमजोर हो रही है। हमारी गंगा-जमुनी तहजीब पर हिंदुत्व की राजनीति के हमले के चलते सांस्कृतिक क्षेत्र में लेखक समुदाय के समक्ष उपस्थित चुनौतियों का और इससे निपटने के उपायों का भी रिपोर्ट में जिक्र किया गया है। विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों के सार्थक और सकारात्मक बहस के बाद जो सुझाव सामने आए, उसे समाहित करते हुए रिपोर्ट सर्वसम्मति से पारित की गई। इस सम्मेलन में 11 प्रस्ताव भी पारित किए गए, जिनमें संवैधानिक मूलाधारों पर सतत हमलों के खिलाफ प्रस्ताव, अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमलों के ख़िलाफ़ प्रस्ताव, पाठ्यक्रमों के साम्प्रदायीकरण के विरुद्ध प्रस्ताव, लेबर कोड यानी गुलामी के दस्तावेज के विरोध में प्रस्ताव, राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर प्रस्ताव, दलित समुदाय का उत्पीड़न तत्काल बंद करने, फिलिस्तीन की भयावह त्रासदी और उसके प्रति भारत का शर्मनाक रवैये के खिलाफ प्रस्ताव और साहित्य अकादमी के सचिव के निलंबन के लिए प्रस्ताव आदि शामिल हैं। इन प्रस्तावों के जरिए लेखक समुदाय और संस्कृतिकर्मियों से तानाशाही और नव-फासीवादी सत्ता द्वारा साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किए जा रहे हमलों का एकजुट होकर मुकाबला करने और कला और संस्कृति के क्षेत्र में  प्रगतिशील, जनवादी और वैज्ञानिक नजरिए से रचनात्मक हस्तक्षेप का जोरदार आह्वान किया गया।

जलेस के राष्ट्रीय सम्मेलन ने आगामी सम्मेलन तक संगठन का काम करने के लिए नए पदाधिकारियों का भी चुनाव किया, जो इस प्रकार है : 

संरक्षक मंडल : मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, वकार सिद्दीकी, जीवन सिंह, मनमोहन और नरेन्द्र जैन

अध्यक्ष : चंचल चौहान
कार्यकारी अध्यक्ष : राजेश जोशी और संजीव कुमार

उपाध्यक्ष : इब्बार रब्बी, नमिता सिंह, रामप्रकाश त्रिपाठी, विष्णु नागर, डॉ. मृणाल, प्रह्लाद चंद्र दास, रेखा अवस्थी, नीरज सिंह, जवरी मल्ल पारख और हरीश चन्द्र पांडे

महासचिव : नलिन रंजन सिंह

संयुक्त महासचिव : बजरंग बिहारी तिवारी, संदीप मील और प्रेम तिवारी

सचिव : शुभा, अली इमाम ख़ान, राजीव गुप्त, हरियश राय, मनोज कुलकर्णी, बली सिंह, ख़ालिद अशरफ़, विनीताभ, बलवंत कौर, समीना खान 

कोषाध्यक्ष : अशोक तिवारी

इसके साथ ही सम्मेलन में केंद्रीय कार्यकारिणी और केंद्रीय परिषद का भी चुनाव किया, जिसमें देश के विभिन्न राज्यों के हिन्दी-उर्दू लेखकों का प्रतिनिधित्व हैं। छत्तीसगढ़ से डॉ. सुखनन्दन सिंह 'ध्रुव', पूर्ण चन्द्र रथ (रायपुर) केंद्रीय कार्यकारिणी में और अजय चन्द्रवंशी (कवर्धा) और भास्कर चौधुरी (कोरबा) केंद्रीय परिषद के लिए निर्वाचित किए गए हैं। छत्तीसगढ़ से सम्मेलन में 25 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।

(रिपोर्टर स्वतंत्र पत्रकार और जनवादी लेखक संघ की छत्तीसगढ़ इकाई के सचिव है।)