कभी भूखे पेट सोया करता था ये बच्चा, आज है रूस का सबसे ताक़तवर शख्स!

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को दुनिया एक रहस्यमय और शक्तिशाली नेता के रूप में जानती है जिन्होंने रूस को दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक बनाए रखा है। पिछले कुछ महीनों में, पुतिन को यूक्रेनी युद्ध और कई देशों से अलगाव सहित कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। यह उनके लिए कोई नई बात नहीं है। उन्होंने अपने जीवन में ऐसे कई उतार-चढ़ाव देखे हैं।
पुतिन की कहानी एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो सोवियत संघ के सबसे गरीब इलाकों में चूहों से लड़ते हुए बड़ा हुआ, जहाँ उसके पिता कारखानों की मशीनों के बीच पसीना बहाते थे और उसकी माँ सड़कों पर झाड़ू लगाती थी। पुतिन दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक कैसे बने? आज हम आपको पुतिन के जीवन के उन पन्नों के बारे में बताएंगे जो गरीबी के काले दिनों से लेकर सत्ता के चमचमाते महलों तक के उनके सफर को बयां करते हैं।
व्लादिमीर पुतिन का जन्म 7 अक्टूबर, 1952 को लेनिनग्राद में हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मन घेराबंदी से इस शहर को भारी नुकसान हुआ था। पुतिन के पिता, व्लादिमीर स्पिरिडोनोविच पुतिन, और माँ, मारिया इवानोव्ना शेलोमोवा, युद्ध से गहरे आघात में थे। उनके दो बड़े बच्चे पहले ही मर चुके थे। एक बच्चे की मृत्यु डिप्थीरिया से हुई थी, और दूसरे की बचपन में ही किसी बीमारी से। पुतिन को परिवार का "चमत्कारी बच्चा" कहा जाता था क्योंकि उनका जन्म घोर गरीबी के दौर में हुआ था, और उनकी माँ अक्सर भूखी रहती थीं।
पुतिन के पिता एक धातु कारखाने में फोरमैन थे। युद्ध के दौरान वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्हें गोली लगी थी, जिससे वे कभी पूरी तरह उबर नहीं पाए। उनकी माँ, मारिया, कई तरह के छोटे-मोटे काम करती थीं, कभी सड़कें साफ़ करती थीं तो कभी कारखानों में काम करती थीं। घर में बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं थीं, और परिवार तीन अन्य परिवारों के साथ एक छोटे से अपार्टमेंट में रहता था। न गर्म पानी था, न शौचालय, और चूहे हमेशा परेशानी का सबब बने रहते थे। पुतिन ने खुद अपनी किताब, "फर्स्ट पर्सन" में लिखा है कि बचपन में, वे और उनके दोस्त लाठी लेकर चूहों को भगाते थे। इस तरह, पुतिन के माता-पिता पूरे दिन काम पर रहते थे, और उन्हें सड़कों पर अकेला छोड़ देते थे।
पुतिन को अक्सर पड़ोस के बच्चे तंग करते थे, और वह बिना पीछे हटे उनका डटकर मुकाबला करते थे। इन झगड़ों ने उन्हें कभी कमज़ोर न पड़ने, अपनी लड़ाई खुद लड़ने और जीतने की सीख दी। अपने स्कूली दिनों में, पुतिन एक औसत छात्र थे। उन्होंने जूडो की कक्षाएं लीं, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुईं। जूडो ने उन्हें अनुशासन सिखाया। 1970 के दशक में, लेनिनग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई के दौरान, वह जासूसी फिल्मों के प्रति आकर्षित हो गए। "द शील्ड एंड द स्वॉर्ड" जैसी सोवियत फिल्में देखने के बाद, वह सोवियत खुफिया एजेंसी, केजीबी में शामिल होने का सपना देखने लगे।
1975 में केजीबी में शामिल हो गए। उन्होंने वहीं अपनी जासूसी की ट्रेनिंग शुरू की। 1985 से 1990 तक, वह पूर्वी जर्मनी के ड्रेसडेन में तैनात रहे, जहाँ उन्होंने नाटो के राज़ उगलवाने की कोशिश की। हालाँकि, बर्लिन की दीवार गिरने के बाद उन्हें अचानक सारा काम रोकना पड़ा और केजीबी के दस्तावेज़ों को बचाने के लिए उन्होंने उन्हें आग लगा दी। इस अनुभव ने उन्हें अराजकता के दौर में एक मज़बूत केंद्रीय सत्ता के महत्व का एहसास कराया।
पुतिन ने 1991 में केजीबी छोड़ दी और लेनिनग्राद लौट आए। यहाँ, भाग्य ने उनका साथ दिया। वे अपने पूर्व प्रोफेसर अनातोली सोबचक के सहायक बन गए, जो शहर के नए मेयर चुने गए थे। सोबचक ने पुतिन को विदेशी निवेश और वित्तीय प्रबंधन की ज़िम्मेदारी सौंपी। पुतिन की कड़ी मेहनत रंग लाई। 1994 तक, वे उप-मेयर बन गए। यह दौर रूस के लिए उथल-पुथल भरा था। अर्थव्यवस्था चरमरा रही थी, अपराध बढ़ रहे थे और पूर्व सोवियत राज्यों में अस्थिरता फैल रही थी। लेकिन पुतिन चुपचाप अपना नेटवर्क बनाते रहे।
पुतिन ने इसका कड़ा जवाब दिया। उन्होंने सेना भेजी और चेचन्या पर कब्ज़ा कर लिया। यह "दूसरा चेचन युद्ध" उनकी लोकप्रियता का राज़ बन गया। जनता ने एक मज़बूत नेता को देखा जो 1990 के दशक की अराजकता को खत्म कर सकता था। 31 दिसंबर, 1999 को येल्तसिन ने इस्तीफ़ा दे दिया और पुतिन कार्यवाहक राष्ट्रपति बन गए। उन्होंने मार्च 2000 के चुनावों में 53 प्रतिशत मतों से जीत हासिल की। 2004 में वे फिर से चुने गए, फिर 2008 में, जब संवैधानिक क़ानून के तहत राष्ट्रपति को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया गया, तो वे प्रधानमंत्री बने। 2012 में वे फिर से राष्ट्रपति बने, और 2024 में संवैधानिक बदलाव के साथ, अब वे 2036 तक सत्ता में बने रहेंगे।
पुतिन के जीवन की घटनाओं ने उन्हें दुनिया के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक बनाने में अहम भूमिका निभाई। बचपन की गरीबी ने उन्हें कठोर बना दिया था, और यही वजह है कि पुतिन कभी शिकायत नहीं करते, बल्कि लगातार अवसरों की तलाश में रहते हैं। जूडो ने उन्हें गिरकर भी उठ खड़े होने का महत्व सिखाया। उन्हें सही समय पर सही लोग भी मिले। रूस की मौजूदा परिस्थितियों ने भी उन्हें आगे बढ़ने में मदद की। 1999 में सत्ता संभालने के बाद से, पुतिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, और आज, 25 साल से भी ज़्यादा समय बाद, वे रूस के सर्वोच्च नेता बने हुए हैं।